केंद्रीय हिंदी निदेशालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा इस पुस्तक के कई संस्करण निकाले गए हैं। यह नवीनतम संस्करण 2019 का है। इस पुस्तक का उद्देश्य हिंदी में मानक वर्तनी के प्रयोग को बढ़ावा देना है। इसीलिए यह पुस्तक हिंदी निदेशालय के वेबसाइट पर निःशुल्क उपलब्ध भी है। परंतु यह पुस्तक डिजिटल रूप में यहां या कहीं और उपलब्ध नहीं है जिससे त्वरित खोज करने वालों को परेशानी होती है। इस परेशानी को दूर करने के लिए यहां इस मार्गदर्शिका का पूर्णतः डिजिटल रूप यहां प्रस्तुत किया जा रहा है। इसका कम्प्यूटर डिजिटाइज़ेशन और सटीक रूपांतरण हमने किया है। हिंदी के मानकीकरण का केवल एक मात्र स्रोत यह पुस्तक है जिसे आधिकारिक माना जाता है। आशा है इससे हिंदी पर काम करने वाले भाषाविदों और संगणकीय भाषाविदों को इससे मदद मिलेगी।
विषय सूची
2.2.1 भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप
2.4 परिवर्धित देवनागरी वर्णमाला
2.4.1 परिवर्धित देवनागरी (विशेषक चिह्न)
3.6.2 अनुनासिक चिह्न (चंद्रबिंदु ँ )
3.12 पूर्वकालिक कृदंत प्रत्यय 'कर'
4.2 क्रमसूचक संख्याएँ (Ordinal Numbers)
4.3 भिन्नसूचक संख्याएँ (Fractional Numbers)
भूमिका
भाषा मनुष्य समुदाय के मध्य परस्पर विचार विनिमय का सशक्त एवं विश्वसनीय माध्यम है। भाषा मनुष्य के व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होने के साथ -साथ उसकी सामाजिक-सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अस्मिता का जीवंत प्रतीक भी है। भाषा के बिना मनुष्य समाज की कल्पना ही नहीं की जा सकती। संस्कृत के महान साहित्यकार दंडी ने अपने काव्यादर्श में भाषा के महत्त्व को स्वीकारते हुए कहा है कि “यह संपूर्ण भुवन अंधकारमय हो जाता, यदि संसार में शब्द-स्वरूप ज्योति अर्थात् भाषा का प्रकाश न होता।" भाषा के माध्यम से ही देश की संस्कृति, परंपरा से प्राप्त अथाह ज्ञान-विज्ञान एवं गौरवमय इतिहास को जाना जा सकता है। लिपि भाषा की अमूल्य धरोहर को संचित करने, उसकी समुन्नति और उसके व्यवहार क्षेत्र को प्रदर्शित करने का सर्वाधिक प्रभावी माध्यम है।
भारत के विस्तृत भूभाग में बोली जाने वाली भाषा हिंदी है, जिसकी लिपि देवनागरी है। हिंदी भाषा के व्यवहार क्षेत्र और उसकी जन-व्यापकता को देखते हुए ही स्वतंत्रता के पश्चात 14 सितंबर,1949 को देवनागरी में लिखित हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी, हिंदी भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी लोगों के बीच संपर्क स्थापित करने का माध्यम रही और उसने उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक सभी देशवासियों को एकता के सूत्र में पिरोने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। स्वतंत्रता आंदोलन में हिंदी की महत्त्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए ही महात्मा गांधी ने कहा था - "अखिल भारत के परस्पर व्यवहार के लिए ऐसी भाषा की आवश्यकता है, जिसे जनता का अधिकतम भाग पहले से ही जानता-समझता है और हिंदी इस दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ है।” वर्तमान में देवनागरी लिपि हिंदी भाषा के अतिरिक्त संस्कृत, मराठी, कोंकणी, संताली, बोडो और नेपाली आदि भाषाओं की भी लिपि है।
भारतीय संविधान में हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित होने पर हिंदी की लिपि, वर्तनी और अंकों का स्वरूप आदि विषयों में एकरूपता लाने के लिए तत्कालीन शिक्षा मंत्रालय (वर्तमान में मानव संसाधन विकास मंत्रालय) द्वारा विविध स्तरों पर प्रयास किए गए। सन 1966 में शिक्षा मंत्रालय ने मानक देवनागरी वर्णमाला प्रकाशित की। इसके अनुसार देवनागरी के जो वर्ण एक से अधिक रूपों में लिखे जाते थे, उनके स्थान पर प्रत्येक वर्ण का एक ही मानक रूप निर्धारित किया गया था। संघ की राजभाषा के रूप में हिंदी के स्वीकृत होने तथा विभिन्न राज्यों की अपनी-अपनी भाषाओं को प्रतिष्ठा मिल जाने के बाद देवनागरी को देश की सामासिक संस्कृति की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बनाने के लिए अन्य भारतीय भाषाओं के
मानक लिप्यंतरण की आवश्यकता अनुभव की गई। देवनागरी में अन्य भारतीय भाषाओं की जिन विशिष्ट ध्वनियों के लिपि चिह्न नहीं थे, उनके लिए नए लिपि चिह्नों का निर्धारण किया गया और तत्कालीन शिक्षा मंत्रालय द्वारा सन 1966 में परिवर्धित देवनागरी वर्णमाला नामक पुस्तिका प्रकाशित की गई। वर्णमाला के साथ ही हिंदी वर्तनी की विविधता को दूर कर वर्तनी की एकरूपता स्थापित करने का भी तत्कालीन शिक्षा मंत्रालय ने प्रयास किया और हिंदी वर्तनी की विभिन्न समस्याओं को दूर करने के लिए भाषाविदों के साथ गंभीर विचार -विमर्श के पश्चात 1967 में हिंदी वर्तनी का मानकीकरण नामक पुस्तक का प्रकाशन किया। मानक देवनागरी वर्णमाला, परिवर्धित देवनागरी वर्णमाला और हिंदी वर्तनी का मानकीकरण इन तीनों पुस्तिकाओं के समन्वित रूप को संशोधन और परिवर्धन के साथ केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा सन 1983 में देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण नामक पुस्तक का प्रकाशन किया गया। इस कार्य में केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा भाषाविदों, पत्रकारों, हिंदी सेवी संस्थाओं तथा विभिन्न मंत्रालयों के प्रतिनिधियों के सहयोग से इन विषयों पर सर्वसम्मत निर्णय तक पहुँचने का प्रयास किया गया था।
वर्तमान युग सूचना-प्रौद्योगिकी का युग है। वैश्वीकरण के इस दौर में भौगोलिक दूरियां संकुचित हो रही हैं, जिस कारण समस्त विश्व ने एक ग्राम का स्वरूप ले लिया है। वैज्ञानिक संसाधनों के नित-नए आविष्कारों के साथ ही परस्पर संपर्क स्थापित करने के नित नए माध्यम भी विकसित हो रहे हैं। इस परिदृश्य में विश्व स्तर पर एक ऐसी भाषा की आवश्यकता है जो परिवर्तित होती हुई जीवन शैली के साथ जन- मन की सभी अंतर्राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। मुझे यह कहने में गर्व है कि हिंदी ज्ञान-विज्ञान और साहित्य की विभिन्न विधाओं और दैनंदिन प्रयोग में आने वाली प्रयुक्तिगत शब्दावली को अभिव्यक्त करने में पूर्ण सशक्त और समृद्ध है। अपनी संप्रेषण क्षमता के बल पर ही हिंदी आज न केवल विश्व की अन्य भाषाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है बल्कि द्रुत गति से विश्व-भाषा बनने की ओर भी अग्रसर है। विश्व पटल पर हिंदी की व्यापकता के कारण ही भारत की प्राचीन अथाह ज्ञान -विज्ञान संपदा के प्रति विद्वानों का आकर्षण बढ़ा है। आज वैदिक साहित्य, ज्ञान-विज्ञान और गणित विश्व के विभिन्न विश्वविद्यालयों में शोध का विषय बन चुका है।
यह निर्विवाद है कि हिंदी को आधुनिक सूचना- प्रौद्योगिकी की दृष्टि से समुन्नत बनाने में देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता और उसकी व्यवस्थित ध्वन्यात्मक वर्णमाला ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विगत कुछ समय में हिंदी और देवनागरी दोनों ही मानकीकरण और परिमार्जन के दौर से गुजरी हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में निरंतर विकास और प्रगति को देखते हुए हिंदी भाषा, देवनागरी लिपि तथा वर्तनी के मानकीकरण को संशोधित और परिवर्धित करते रहने की आवश्यकता महसूस की जाती रही है। कंप्यूटर में उपलब्ध विविध सॉफ्टवेयर और फॉन्ट के कारण कई बार हिंदी भाषा में कार्य करने में व्यवहारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। इन समस्याओं के समाधान के लिए सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सहयोग से यूनीकोड तैयार किया गया, जिसके आधार पर हिंदी वर्तनी के मानक स्वरूप को विकसित करने में सहायता मिली। संविधान की आठवीं अनुसूची में स्वीकृत बाईस भारतीय भाषाओं को देवनागरी में लिखा जा सके, इसके लिए भी निदेशालय द्वारा भाषा विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में परिवर्धित देवनागरी लिपि तैयार की गई जिसमें विभिन्न भारतीय भाषाओं के लिए विशेषक चिह्न निर्धारित किए गए।
देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण पुस्तक के इस नवीन संस्करण में भी भाषाविदों के परामर्श पर कुछ व्यावहारिक एवं उपयोगी संशोधन किए गए हैं। “द” के साथ अर्धस्वर य और व आने पर संयुक्त व्यंजनों के परंपरागत रूप को प्राथमिकता देना तथा संयुक्ताक्षर के साथ आने वाली हस्व “इ” की मात्रा का विशिष्ट संशोधित रूप इनमें प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं।
इस महत्त्वपूर्ण कार्य में भाषाविदों, भाषा-विशेषज्ञों,तकनीकी विशेषज्ञों, पत्रकारों, प्रकाशकों, हिंदी सेवी संस्थाओं तथा विभिन्न मंत्रालयों के प्रतिनिधियों का सहयोग प्राप्त हुआ है। मैं निदेशालय परिवार की ओर से सभी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ और आशा करता हूँ कि देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण पुस्तक का यह नवीनतम संस्करण हिंदी भाषा के आधुनिकीकरण और मानकीकरण की दिशा में नवीन दिशा प्रशस्त करेगा, साथ ही देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी को तकनीकी दृष्टि से और अधिक समृद्ध करके उसे सर्वजन सुकर, सर्वजन ग्राह्य और सर्वजन उपयोगी बनाएगा। इस संस्करण के संबंध में आप सभी के बहुमूल्य सुझावों तथा विचारों का स्वागत है। निदेशालय द्वारा इन सुझावों पर यथासमय कार्यवाही कर देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण पस्तक को और अधिक सामयिक एवं उपयोगी बनाया जाएगा।
(प्रोफेसर अवनीश कुमार)
निदेशक
हिंदी वर्णमाला
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ
क ख ग घ ङ |
च छ ज झ ञ |
ट ठ ड ढ ण |
त थ द ध न |
प फ ब भ म |
य र ल व |
श ष स ह |
ड़ ढ़ |
क्ष त्र ज्ञ श्र |
1. देवनागरी लिपि का परिचय
भाषा के उच्चरित रूप को निर्धारित प्रतीक चिह्नों के माध्यम से लिखित रूप देने का माध्यम ही लिपि है, अर्थात् किसी भाषा के लिखने का ढंग लिपि कहलाता है। दूसरे शब्दों में, लिपि मनुष्य द्वारा अपने भावों, विचारों, अनुभवों आदि को संप्रेषित करने का दृश्य माध्यम है। लिपि के कारण ही सहस्रों वर्ष पूर्व के शिलालेख, ताम्रपत्र, हस्तलेख आदि आज भी जीवंत हैं, जो हमें उस काल के इतिहास, वैभव, सभ्यता आदि से परिचित कराते हैं। लिपि मानव समुदाय का एक अद्भुत आविष्कार है। लिपि की उत्पत्ति से पूर्व भावाभिव्यक्ति का दायरा बोलने और सुनने तक ही सीमित था। मनुष्य की यह उत्कट अभिलाषा रही होगी कि उसके ज्ञान-विज्ञान संबंधी भाव और विचार दूर-दूर तक पहुँच सकें।
और उन्हें भविष्य के लिए संचित किया जा सके। यही इच्छा आगे चलकर मनुष्य के लिए लिपि के आविष्कार की प्रेरणा भी बनी। विश्व में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। इनमें अधिकतर भाषाओं की अपनी लिपि है। जापानी भाषा की जापानी तथा चीनी भाषा की चीनी लिपि है। अंग्रेजी, फ्रांसीसी, स्पेनिश आदि यूरोपीय भाषाओं के लिए रोमन लिपि का प्रयोग होता है। भारत में भी अनेक लिपियाँ प्रचलित हैं। यहाँ बांग्ला, तमिल, तेलुगु, मलयालम, गुजराती आदि भाषाओं की अपनी-अपनी लिपियाँ हैं। हिंदी भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। प्रारंभ में देवनागरी लिपि का प्रयोग संस्कृत भाषा के लिए होता था। आज भी हो रहा है। इस समय देवनागरी लिपि में हिंदी के अतिरिक्त मराठी, कोंकणी, नेपाली, डोगरी आदि कई भाषाएँ लिखी जा रही हैं।
देवनागरी, बांग्ला, गुजराती, आदि लिपियों का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है। ब्राह्मी के प्राचीनतम नमूने (शिलालेख) ईसा से 500 वर्ष पूर्व के प्राप्त होते हैं और 350 ई. तक इसका यही स्वरूप प्रचलित रहा। बाद में इसकी उत्तरी और दक्षिणी शैलियाँ विकसित हो गईं। उत्तरी शैली से देवनागरी, बांग्ला, गुरमुखी आदि लिपियों का तथा दक्षिणी शैली से तमिल, तेलगु, मलयालम और कन्नड आदि लिपियों का विकास हुआ। उत्तरी शैली से विकसित लिपियों में देवनागरी लिपि विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिसका प्रारंभ 1000 ई. पू. से माना जाता है। देवनागरी लिपि निरंतर विकसित होती गई और वर्तमान में यह एक समृद्ध लिपि के रूप में प्रसिद्ध है। देवनागरी लिपि में भारत की बारह भाषाएँ लिखी जाती हैं। विद्वानों ने देवनागरी को विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि स्वीकार किया है।
सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 122 प्रमुख भाषाएँ और 544 अन्य भाषाएँ हैं। इन सभी को भारोपीय, द्रविड़, आस्ट्रो-एशियाटिक और चीनी तिब्बती परिवारों में बाँटा गया है। 'भारत आर्य परिवार' में हिंदी, असमिया, बांग्ला, ओड़िआ, मराठी, गुजराती, पंजाबी, सिंधी, कश्मीरी, 'द्रविड़ परिवार' में तमिल, तेलुगु, कन्नड और मलयालम, 'आस्ट्रो-एशियाटिक परिवार' में संताली और 'चीनी-तिब्बती परिवार' में बोडो तथा मणिपुरी आदि भाषाएँ आती हैं। वर्तमान में संविधान की अष्टम अनुसूची में बाईस भाषाएँ सम्मिलित हैं जिनकी लिपियाँ इस प्रकार हैं –
क्रम संख्या |
भाषा |
लिपि |
1 |
हिंदी |
देवनागरी |
2 |
संस्कृत |
देवनागरी |
3 |
कोंकणी |
देवनागरी |
4 |
डोगरी |
देवनागरी |
5 |
नेपाली |
देवनागरी |
6 |
बोडो |
देवनागरी |
7 |
मराठी |
देवनागरी |
8 |
मैथिली |
तिरहुता / देवनागरी |
9 |
संताली |
ओलचिकि / देवनागरी |
10 |
गुजराती |
गुजराती / देवनागरी |
11 |
कश्मीरी |
फारसी, अरबी, देवनागरी, शारदा |
12 |
सिंधी |
फारसी-अरबी / देवनागरी |
13 |
असमिया |
असमिया |
14 |
ओडिआ |
ओडिआ |
15 |
उर्दू |
फारसी-अरबी |
16 |
कन्नड |
कन्नड |
17 |
तमिल |
तमिल |
18 |
तेलुगु |
तेलुगु |
19 |
पंजाबी |
गुरमुखी |
20 |
बांग्ला |
बांग्ला |
21 |
मणिपुरी |
मैतेई |
22 |
मलयालम |
मलयालम |
2. मानक हिंदी वर्णमाला तथा अंक
वर्ण भाषा की ध्वनियों के उच्चरित तथा लिखित दोनों रूपों के प्रतीक हैं। लिपि चिह्न भाषा के लिखित रूप के प्रतीक होते हैं। इस दृष्टि से लिपि-चिह्न वर्ण के अंतर्गत आते हैं। इन वर्गों के क्रमबद्ध समूह को 'वर्णमाला' कहते हैं। वर्णमाला में सर्वत्र एकरूपता बनाए रखने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय की अधीनस्थ संस्था केंद्रीय हिंदी निदेशालय' द्वारा विद्वानों के विचार-विमर्श के पश्चात् हिंदी वर्णमाला तथा अंकों का अद्यतन मानक स्वरूप निर्धारित किया गया है जो इस प्रकार है :
2.1 हिंदी वर्णमाला
2.1.1 स्वर
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ
संस्कृत के लिए प्रयुक्त देवनागरी में ऋ, लृ तथा लॄ भी सम्मिलित हैं, किंतु हिंदी में इनका प्रयोग न होने के कारण इन्हें हिंदी की मानक वर्णमाला में स्थान नहीं दिया गया है।
2.1.2 मूल व्यंजन
क ख ग घ ङ |
च छ ज झ ञ |
ट ठ ड ढ ण ड़ ढ़ |
त थ द ध न |
प फ ब भ म |
य र ल व |
श ष स ह |
ड़ और ढ़ व्यंजन रूप हिंदी में स्वीकृत ध्वनियाँ हैं। इस तरह हिंदी वर्णमाला में मूलतः 11 स्वर तथा 35 (33 + 2) व्यंजन हैं।
2.1.3 संयुक्त व्यंजन
क्ष (क् + ष) त्र (त् + र) ज्ञ (ज् + ञ) श्र (श् + र)
2.1.4 |
अनुस्वार (शिरोबिंदु) |
ं |
संयम |
(देखें संदर्भ 3.6.1) |
2.1.5 |
अनुनासिक (चंद्रबिंदु) |
ँ |
आँख |
(देखें संदर्भ 3.6.2) |
2.1.6 |
विसर्ग |
ः |
प्रातः |
(देखें संदर्भ 3.7) |
2.1.7 |
हल चिह्न |
् |
भगवत् |
(देखें संदर्भ 3.8) |
2.1.8 |
आगत वर्ण |
|
||
2.1.8.1 |
अवग्रह |
ऽ |
सोsहं |
(देखें संदर्भ 3.9) |
2.1.8.2 |
अर्धचंद्र |
ऑ / ॉ |
डॉक्टर |
|
2.1.8.3 |
क़ |
|
क़लम |
|
2.1.8.4 |
ख़ |
|
मुख़ालफ़त |
|
2.1.8.5 |
ग़ |
|
ग़लत |
|
2.1.8.6 |
ज़ |
|
कागज़ |
|
2.1.8.7 |
फ़ |
|
तकलीफ़ |
2.2 हिंदी अंक
संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के अनुसार संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप होगा। परंतु राष्ट्रपति, संघ के किसी भी राजकीय प्रयोजन के लिए भारतीय अंकों के अंतरराष्ट्रीय रूप के साथ-साथ देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकते हैं।
2.2.1 भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप
1 2 3 4 5 6 7 8 9 0
2.2.2 देवनागरी अंक
१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ 0
2.3 बारहखड़ी
क |
का |
कि |
की |
कु |
कू |
के |
कै |
को |
कौ |
कं |
कः |
ख |
खा |
खि |
खी |
खु |
खू |
खे |
खै |
खो |
खौ |
खं |
खः |
ग |
गा |
गि |
गी |
गु |
गू |
गे |
गै |
गो |
गौ |
गं |
गः |
घ |
घा |
घि |
घी |
घु |
घू |
घे |
घै |
घो |
घौ |
घं |
घः |
च |
चा |
चि |
ची |
चु |
चू |
चे |
चै |
चो |
चौ |
चं |
चः |
छ |
छा |
छि |
छी |
छु |
छू |
छे |
छै |
छो |
छौ |
छं |
छः |
ज |
जा |
जि |
जी |
जु |
जू |
जे |
जै |
जो |
जौ |
जं |
जः |
झ |
झा |
झि |
झी |
झु |
झू |
झे |
झै |
झौ |
झौ |
झं |
झः |
ट |
टा |
टि |
टी |
टु |
टू |
टे |
टै |
टो |
टौ |
टं |
टः |
ठ |
ठा |
ठि |
ठी |
ठु |
ठू |
ठे |
ठै |
ठो |
ठौ |
ठं |
ठः |
ड |
डा |
डि |
डी |
डु |
डू |
डे |
डै |
डो |
डौ |
डं |
डः |
ढ |
ढा |
ढि |
ढी |
ढु |
ढू |
ढे |
ढै |
ढो |
ढौ |
ढं |
ढः |
ण |
णा |
णि |
णी |
णु |
णू |
णे |
णै |
णो |
णौ |
णं |
णः |
त |
ता |
ति |
ती |
तु |
तू |
ते |
तै |
तो |
तौ |
तं |
तः |
थ |
था |
थि |
थी |
थु |
थू |
थे |
थै |
थो |
थौ |
थं |
थः |
द |
दा |
दि |
दी |
दु |
दू |
दे |
दै |
दो |
दौ |
दं |
दः |
ध |
धा |
धि |
धी |
धु |
धू |
धे |
धै |
धो |
धौ |
धं |
धः |
न |
ना |
नि |
नी |
नु |
नू |
ने |
नै |
नो |
नौ |
नं |
नः |
प |
पा |
पि |
पी |
पु |
पू |
पे |
पै |
पो |
पौ |
पं |
पः |
फ |
फा |
फि |
फी |
फु |
फू |
फे |
फै |
फो |
फौ |
फं |
फः |
ब |
बा |
बि |
बी |
बु |
बू |
बे |
बै |
बो |
बौ |
बं |
बः |
भ |
भा |
भि |
भी |
भु |
भू |
भे |
भै |
भो |
भौ |
भं |
भः |
म |
मा |
मि |
मी |
मु |
मू |
मे |
मै |
मो |
मौ |
मं |
मः |
य |
या |
यि |
यी |
यु |
यू |
ये |
यै |
यो |
यौ |
यं |
यः |
र |
रा |
रि |
री |
रु |
रू |
रे |
रै |
रो |
रौ |
रं |
रः |
ल |
ला |
लि |
ली |
लु |
लू |
ले |
लै |
लो |
लौ |
लं |
लः |
व |
वा |
वि |
वी |
वु |
वू |
वे |
वै |
वो |
वौ |
वं |
वः |
श |
शा |
शि |
शी |
शु |
शू |
शे |
शै |
शो |
शौ |
शं |
शः |
ष |
षा |
षि |
षी |
षु |
षू |
षे |
षै |
षो |
षौ |
षं |
षः |
स |
सा |
सि |
सी |
सु |
सू |
से |
सै |
सो |
सौ |
सं |
सः |
ह |
हा |
हि |
ही |
हु |
हू |
हे |
है |
हो |
हौ |
हं |
हः |
नोट : 1. उपर्युक्त बारहखड़ी के अनुरूप ही ड़ और ढ़ के साथ भी मात्राओं का प्रयोग किया जाता है, जैसे –
कड़ा, गुड़िया, सड़ी, झाड़ू
पढ़ा, चढ़ी
- व्यंजनों के साथ 'ऋ' का संयोग होने पर शब्दों का निर्माण इस तरह होता है :
कृपा, गृह, घृणा, तृप्ति, पृष्ठ, मृत, सृष्टि
2.4 परिवर्धित देवनागरी वर्णमाला
परिवर्धित देवनागरी, देवनागरी वर्णमाला का वह रूप है जिसमें मूल देवनागरी लिपि में कुछ प्रतीक-चिह्न (विशेषक चिह्न) जोड़े गए हैं। परिवर्धित चिह्नों को जोड़ने का मूल उद्देश्य यह है कि देवनागरी लिप्यंतरण करते समय अर्थभेदकता की स्थिति में संबंधित भाषा की ध्वनियों का लेखन संभव हो सके।
देवनागरी लिपि को भारतीय भाषाओं के लिप्यंतरण का सशक्त माध्यम बनाने के लिए यह अपेक्षित है कि देवनागरी में अन्य भाषाओं की ध्वनियों के सूचक प्रतीक चिह्नों का विकास किया जाए। अतः विभिन्न भाषाओं के भाषा-विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श करने के बाद 'परिवर्धित देवनागरी' का विकास किया गया है, जिसमें दक्षिण भारत की भाषाओं के साथ-साथ कश्मीरी, बांग्ला, मराठी, ओड़िआ तथा असमिया भाषाओं के विशिष्ट स्वरों और व्यंजनों के साथ-साथ सिंधी और उर्दू की विशिष्ट ध्वनियों के लिप्यंतरण के लिए देवनागरी में अपेक्षित परिवर्धन किया गया।
देवनागरी लिपि में जिन ध्वनियों के लिए कोई चिह्न उपलब्ध नहीं है, अर्थात् जो ध्वनियाँ हिंदी भाषा में स्वनिमिक (Phonemic) स्तर पर विद्यमान नहीं हैं, उनके लिए ही विशेषक चिह्न निर्धारित किए गए। उदाहरण के लिए दक्षिण भारतीय भाषाओं एवं कश्मीरी में हस्व 'ए' और 'ओ' उपलब्ध हैं किंतु देवनागरी में वे स्वनिमिक स्तर पर उपलब्ध नहीं हैं।
अनेक भारतीय भाषाओं की वर्णमाला देवनागरी वर्णमाला के समान है परंतु भाषा विशेष में कुछ वर्णों का उच्चारण सामान्य हिंदी के उच्चारण से भिन्न है। यह भाषाओं के ध्वन्यात्मक व्यतिरेक (Phonetic Contrast) का विषय है।
2.4.1 परिवर्धित देवनागरी (विशेषक चिह्न)
संविधान की अष्टम अनुसूची में परिगणित अन्य भारतीय भाषाओं की विशिष्ट ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए देवनागरी वर्णमाला में जो विशेषक चिह्न (Diacritical Marks) जोड़े गए, उनकी अद्यतन स्थिति यहाँ वर्णित है।
2.4.1.1 स्वर
ह्रस्व ए, ओ |
ॆ(0946), ऎ (090E), ॊ (094A), ऒ (0912) |
कश्मीरी के विशिष्ट स्वर |
ॖ (0956), ॶ (0976), ॗ (0957), ॷ (0977), ॅ (0945), ॲ (0972), ॉ (0949), ऑ (0911) |
संताली के विशिष्ट स्वर |
ऻ (093B), ॳ (0973), ॽ (097D) |
(ध्यान दें: प्रयोक्ताओं की सुविधा के लिए कोष्ठकों में दी गई कुंजी संख्या यूनीकोड से साभार उद्धृत है। इससे संबंधित विस्तृत जानकारी वेबलिंक : https://unicode.org/charts/PDF/U0900.pdf पर उपलब्ध है।)
2.4.1.2 व्यंजन
कश्मीरी चवर्ग |
च़ छ़ ज़ |
सिंधी अंतः स्फोटी व्यंजन |
ग ज ड ब |
बांग्ला, असमिया |
य़ |
तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड, मराठी एवं ओडिआ |
ळ |
तमिल ழ और मलयालम ഴ |
ऴ |
तमिल ன |
ऩ |
तमिल ற, मलयालम റ, तेलुगु ఱ, कन्नड ಱ |
ऱ |
2.4.1.3 देवनागरी में लिप्यंतण हेतु अन्य अपेक्षित जानकारी
भाषाविदों एवं भाषाविशेषज्ञों ने सर्वसम्मति से देवनागरी में भाषा-विशेष के लिप्यंतरण हेतु निम्नलिखित मार्गदर्शन भी दिया है :
तमिल |
ற்ற |
ट्र |
तमिल |
ன்ற |
ऩ्ऱ |
मलयालम |
റ്റ |
ऱ्ऱ |
मैथिली : भऽ / कऽ / अथवा भ' / क' के स्थान पर यूनीकोड की (ऺ) 093A कुंजी संख्या का उपयोग कर वह भऺ/कऺ के रूप में लिखा जाए।
मणिपुरी : मणिपुरी की मौखिक भाषा में दो तरह के तान (tone) स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त होते हैं परंतु इसकी लिपि 'मैती' में उसके लिए कोई तान (tone) अंकित नहीं किया जाता।
पंजाबी : इसी प्रकार पंजाबी भाषा भी तानयुक्त (tonal) भाषा है, लेकिन पंजाबी वर्तनी में उसका कोई तान अर्थात् विशेषक चिह्न अंकित नहीं किया जाता।
2.5 हिंदी वर्णमाला लेखन विधि
3. हिंदी वर्तनी का मानकीकरण
किसी भी भाषा के सीखने-सिखाने में सहायक या बाधक बनने वाले दो प्रमुख कारक हैं - भाषा का व्याकरण और उसकी लिपि। लिपि का एक पक्ष है - सामान्य और विशिष्ट स्वनों के पृथक प्रतीक वर्गों की स्पष्टता, उनका परस्पर स्पष्ट आकार-भेद, लिखावट में सरलता, स्थान-लाघव एवं प्रयत्न-लाघव।
लिपि का दूसरा पक्ष है - वर्तनी। एक ही स्वन को प्रकट करने के लिए विविध रूपी वर्गों का प्रयोग वर्तनी को जटिल बना देता है और यह लिपि का एक सामान्य दोष माना जाता है। यद्यपि देवनागरी लिपि में यह दोष बहत कम है, फिर भी उसकी अपनी कुछ विशिष्ट कठिनाइयाँ भी हैं। इन सभी कठिनाइयों को दूर कर केंद्रीय हिंदी निदेशालय ने वर्तनी के मानकीकरण के लिए कुछ नियम बनाए, जो इस प्रकार हैं :
3.1 संयुक्त वर्ण
3.1.1 खड़ी पाई वाले व्यंजन
खड़ी पाई वाले व्यंजनों के संयुक्त रूप परंपरागत तरीके से खड़ी पाई को हटाकर ही बनाए जाएँ, जैसे -
ख्याति, व्यास, श्लोक, ध्वनि, न्यास, प्यास, त्र्यंबक, स्वीकृति, लग्न, विघ्न, कच्चा, छज्जा, कुत्ता*, पथ्य, डिब्बा, सभ्य, रम्य, यक्ष्मा।
*दो अर्ध त (त्त) के एक साथ आने पर स्थान लाघव को देखते हुए उसका परंपरागत रीति से संयुक्त रूप बनाया जाए, जैसे - महत्त्व, तत्त्व
3.1.2 अन्य व्यंजन
3.1.2.1 क और फ/फ़ के हुक के आधे भाग को हटाकर संयुक्ताक्षर बनाए जाएँ, जैसे - संयुक्त, पक्का, दफ्तर।
3.1.2.2 ङ, छ, ट, ठ, ड, ढ और ह के संयुक्ताक्षर हल चिह्न लगाकर बनाए जाएँ,
जैसे - वाङ्मय, उच्छ्वास, लट्टू, बुड्ढा, चिह्न, ब्रह्मा।
लेकिन द के साथ अर्धस्वर य और व आने पर हलंत के स्थान पर संयुक्त व्यंजन बनाने के परंपरागत रूप को प्राथमिकता दी जाए, जैसे –
विद्या, विद्यालय, विद्यमान, द्विवेदी, द्विधा ।
3.1.2.3 संयुक्त 'र' के प्रचलित तीनों रूप यथावत् रहेंगे, जैसे - प्रकार, धर्म, राष्ट्र।
3.1.2.4 'श्र' का प्रचलित यही रूप मान्य होगा। श के साथ 'र' के संयोग से श्र (श्रद्धा)
और 'ऋ' के संयोग से (ृ) रूप बनते हैं। त् + र के संयुक्त रूप के लिए 'त्र' ही मानक माना जाए। श्र और त्र के अतिरिक्त अन्य व्यंजन + र के संयुक्ताक्षर 3.1.2.3 के नियमानुसार बनेंगे। जैसे –
क्र, प्र, ब्र, स, ह्र आदि।
3.1.2.5 हल चिह्न युक्त वर्ण से बनने वाले संयुक्ताक्षर के साथ आने वाली ह्रस्व 'इ' की मात्रा को शब्द युग्म के पूर्व से लगाते हुए पूर्ण व्यंजन तक ले जाया जाए* ,
जैसे – कुट्टिम, चिट्ठियाँ, बुद्धिमान, चिह्नित
3.2 कारक-चिह्न / परसर्ग
3.2.1 हिंदी के कारक चिह्न सभी प्रकार के संज्ञा शब्दों में प्रातिपदिक से पृथक् लिखे जाएँ, जैसे - राम ने, राम को, राम से, राम का, सेवा में। सर्वनाम शब्दों में ये चिह्न प्रातिपदिक के साथ मिलाकर लिखे जाएँ, जैसे –
तूने, आपने, तुमसे, उसने, उसको, उससे, मुझको, मुझसे।
सर्वनामों के साथ यदि दो कारक-चिह्न हों तो उनमें से पहला मिलाकर और दूसरा पृथक लिखा जाए, जैसे - उसके लिए, इसमें से।
3.2.2 सर्वनाम और कारक-चिह्न के बीच 'ही', 'तक' आदि निपात हों तो कारक चिह्न को पृथक लिखा जाए, जैसे –
आप ही के लिए, मुझ तक को।
3.3 संयुक्त क्रियापद
संयुक्त क्रियापदों में सभी अंगीभूत क्रियाएँ पृथक-पृथक लिखी जाएँ, जैसे –
पढ़ा करता है, आ सकता है, जाया करता है, खाया करता है, जा सकता है, कर सकता है, किया करता था, पढ़ा करता था, खेला करेगा, घूमता रहेगा, बढ़ते चले जा रहे हैं।
3.4 योजक चिह्न (-)
3.4.0 योजक चिह्न (हाइफन) का विधान स्पष्टता के लिए किया जाता है।
3.4.1 द्वंद्व समास में पदों के बीच हाइफन रखा जाए, जैसे – राम-लक्ष्मण, चाल चलन, हँसी- मजाक, लेन-देन, पढ़ना-लिखना, खाना-पीना, खेलना-कूदना आदि।
3.4.2 समानता सूचक सा, से, सी आदि से पूर्व हाइफन रखा जाए, जैसे – तुम-सा (होशियार), चाकू-सी (जुबान)।
3.4.3 तत्पुरुष समास में हाइफन का प्रयोग केवल वहीं किया जाए जहाँ उसके बिना भ्रम होने की संभावना हो, जैसे – भू-तत्व।
सामान्यतः तत्पुरुष समास में हाइफन लगाने की आवश्यकता नहीं है, जैसे –
रामराज्य, राजकुमार, गंगाजल, ग्रामवासी, आत्महत्या आदि।
3.4.4 कठिन संधियों से बचने के लिए भी हाइफन का प्रयोग किया जा सकता है। जैसे -
द्वि-अक्षर, द्वि-अर्थ, त्रि-अक्षर आदि।
3.5 अव्यय
3.5.1 'तक', 'साथ' आदि अव्यय सदा पृथक लिखे जाएँ, जैसे – यहाँ तक, आपके साथ।
3.5.2 आह, ओह, अहा, ऐ, ही, तो, सो, भी, न, जब, तक, कब, यहाँ, वहाँ, कहाँ, सदा, क्या, श्री, जी, तक, भर, मात्र, साथ, कि, किंतु, मगर, लेकिन, चाहे, या, अथवा, तथा, यथा, और आदि अनेक प्रकार के भावों का बोध कराने वाले अव्यय हैं। कुछ अव्ययों के आगे परसर्ग (कारक-चिह्न) भी आते हैं, जैसे – अब से, तब से, यहाँ से, सदा से। नियम के अनुसार अव्यय सदा पृथक लिखे जाने चाहिए, जैसे – आप ही के लिए, मुझ तक को, आपके साथ, गज भर कपड़ा, देश भर, रात भर, दिन भर, वह इतना भर कर दे, मुझे जाने तो दो, काम भी नहीं बना, पचास रुपए मात्र।
3.5.3 सम्मानार्थक 'श्री' और 'जी' अव्यय भी पृथक लिखे जाएँ, जैसे – श्री गंगाधर, कन्हैयालाल जी, महात्मा जी। (यदि श्री, जी आदि व्यक्तिवाचक संज्ञा के ही भाग हों तो मिलाकर लिखे जाएँ, जैसे - श्रीराम, रामजी लाल)।
3.5.4 समस्त पदों में प्रति, मात्र, यथा आदि अव्यय जोड़कर लिखे जाएँ, जैसे – प्रतिदिन, प्रतिशत, मानवमात्र, निमित्तमात्र, यथासमय, यथोचित आदि। यह सर्वविदित नियम है कि समास होने पर समस्त पद एक माना जाता है। अतः उसे पृथक रूप में न लिखकर एक साथ लिखना ही संगत है। 'दस रुपये मात्र', 'मात्र दो व्यक्ति' में पदबंध की रचना है। यहाँ 'मात्र' अलग से लिखा जाए।
3.6 अनुस्वार तथा अनुनासिक
3.6.0 अनुस्वार व्यंजन है और अनुनासिक स्वर का नासिक्य अभिलक्षण। हिंदी में ये दोनों अर्थभेदक भी हैं। अतः हिंदी में अनुस्वार (ं) और अनुनासिक चिह्न (ँ) दोनों ही प्रचलित रहेंगे।
3.6.1 अनुस्वार (शिरोबिंदु )
3.6.1.1 संस्कृत शब्दों में अनुस्वार का प्रयोग अन्य वर्गीय वर्णों ('य' से 'ह' तक) से पहले यथावत रहेगा, जैसे – संयोग, संरक्षण, संलग्न, अंश, कंस, सिंह।
3.6.1.2 संयुक्त व्यंजन के रूप में जहाँ पंचम वर्ण (पंचमाक्षर) के बाद सवर्गीय शेष चार वर्गों में से कोई वर्ण हो तो एकरूपता के लिए अनुस्वार का ही प्रयोग करना चाहिए, जैसे – पंकज, गंगा, चंचल, मंजूषा, कंठ, संत, संध्या, मंदिर, संपादक, संबंध आदि।
3.6.1.3 यदि पंचमाक्षर के बाद किसी अन्य वर्ग का कोई वर्ण आए तो पंचमाक्षर अनुस्वार के रूप में परिवर्तित नहीं होगा। जैसे – वाङ्मय, अन्य, चिन्मय, उन्मुख आदि।
3.6.1.4 पंचम वर्ण यदि द्वित्व रूप में (साथ-साथ) आए तो वह अनुस्वार में परिवर्तित नहीं होगा। जैसे – अन्न, सम्मेलन, सम्मति आदि।
3.6.1.5 संस्कृत के कुछ तत्सम शब्दों के अंत में अनुस्वार का प्रयोग 'म्' का सूचक है, जैसे - अहं (अहम्), एवं (एवम्) शिवं (शिवम्)।
3.6.2 अनुनासिक चिह्न (चंद्रबिंदु ँ )
3.6.2.1 हिंदी के शब्दों में उचित ढंग से चंद्रबिंदु का प्रयोग अनिवार्य होगा।
3.6.2.2 अनुनासिक चिह्न व्यंजन नहीं हैं, स्वरों का ध्वनिगुण है। अनुनासिक स्वरों के उच्चारण में मुँह और नाक से हवा निकलती है, जैसे – आँ, ॐ, एँ, माँ, हूँ, माँगें।
3.6.2.3 चंद्रबिंद के प्रयोग के बिना प्रायः अर्थ में भ्रम की संभावना रहती है, जैसे – हंस, हँस, अंगना, अँगना आदि में। अतएव ऐसे भ्रम को दूर करने के लिए चंद्रबिंदु का प्रयोग अवश्य किया जाना चाहिए।
3.7 विसर्ग (ः )
3.7.1 संस्कृत के जिन शब्दों में विसर्ग का प्रयोग होता है, वे शब्द यदि तत्सम रूप में प्रयुक्त हों तो विसर्ग का प्रयोग किया जाए, जैसे – 'दुःखानुभूति' । यदि उस शब्द के तद्भव रूप में विसर्ग का लोप हो चूका हो तो उस रूप में विसर्ग के बिना भी काम चल जाएगा, जैसे – दुख-सुख के साथी।
3.7.2 तत्सम शब्दों के अंत में प्रयुक्त विसर्ग का प्रयोग अनिवार्य है, जैसे - अतः, पुनः, स्वतः, प्रायः, पूर्णतः, मूलतः, अंततः, वस्तुतः, क्रमशः।
3.7.3 दुःसाहस/दुस्साहस, निःशब्द/निश्शब्द के उभय रूप मान्य होंगे।
3.7.3.1 निःस्वार्थ, अंतःकरण, अंतःपुर, दुःस्वप्न, निःसंतान, प्रातः आदि शब्द विसर्ग के साथ ही लिखे जाएँ।
3.7.5 विसर्ग को वर्ण के साथ मिलाकर लिखा जाए, जबकि कोलन चिह्न (उपविराम) शब्द से कुछ दूरी पर हो, जैसे - प्रात: (विसर्ग युक्त शब्द)
फूल के पर्यायवाची हैं : सुमन, कुसुम।
3.8 हल चिह्न (्)
3.8.1 व्यंजन के नीचे लगा हल चिह्न उस व्यंजन के स्वर रहित होने की सूचना देता है, यानि वह व्यंजन विशुद्ध रूप से व्यंजन है।
3.8.2 संयुक्ताक्षर बनाने के नियम 3.1.2.2 के अनुसार छ, ट, ठ, ड, ढ, ह में हल चिह्न का प्रयोग होगा, जैसे - चिह्न और बुड्ढा।
3.8.3 तत्सम शब्दों का प्रयोग वांछनीय हो तो हलंत रूपों का प्रयोग किया जाए, विशेष रूप से तब जब कि उनसे समस्त पद या व्युत्पन्न शब्द बनते हों, जैसे - प्राक्-(प्रागैतिहास), वाक्-(वाग्देवी), सत्-(सत्साहित्य), भगवन् (भगवद्भक्ति), साक्षात्-(साक्षात्कार), जगत्-(जगन्नाथ), तेजस्-(तेजस्वी), विद्युत्- (विद्युल्लता) आदि। तत्सम संबोधन में हे राजन्, हे भगवन् मान्य हैं।
3.9 अवग्रह (ऽ)
संधि के कारण विलुप्त हुए 'अ' को प्रदर्शित करने के लिए अवग्रह चिह्न का प्रयोग किया जाता है, जैसे - शिव + अहम् = शिवोऽहम।
3.10 स्वन परिवर्तन
3.10.1 संस्कृतमूलक तत्सम शब्दों की वर्तनी को ज्यों-का-त्यों ग्रहण किया जाए।
3.11 'ऐ', 'औ' का प्रयोग
3.11.1 हिंदी में ऐ (ै), औ (ौ) का प्रयोग दो प्रकार के उच्चारण को व्यक्त करने के लिए होता है। पहले प्रकार का उच्चारण 'है', 'और' आदि में मूल स्वरों की तरह होता है जबकि दूसरे प्रकार का उच्चारण गैया, नैया, भैया, कौवा आदि जैसे शब्दों में संध्यक्षरों (diphtongs) के रूप में आज भी सुरक्षित है। नियमानुसार 'य' के पहले 'ऐ' होने से उसका उच्चारण 'अई' के रूप में होगा और 'व' के पहले 'औ' होने पर उसका उच्चारण 'अउ' के रूप में होगा। दोनों ही प्रकार के उच्चारणों को व्यक्त करने के लिए इन्हीं चिह्नों (ऐ ै, औ ौ) का प्रयोग किया जाए। अन्य उदाहरण हैं - भैया, सैयद, तैयार, हौवा आदि।
3.11.2 दक्षिण के अय्यर, नय्यर, रामय्या आदि व्यक्तिनामों को मूल भाषा के अनुरूप लिखा जाए।
3.11.3 अव्वल, कव्वाल, कव्वाली जैसे शब्द प्रचलित हैं। इन्हें लेखन में यथावत् रखा जाए।
3.12 पूर्वकालिक कृदंत प्रत्यय 'कर'
3.12.1 पूर्वकालिक कृदंत प्रत्यय 'कर' क्रिया से मिलाकर लिखा जाए, जैसे - पाकर, खा-पीकर, रो-रोकर आदि। कर + कर के संयोग से 'करके' और करा + कर के संयोग से 'कराके' बनेगा।
3.13. 'वाला' प्रत्यय
3.13.1 क्रिया रूपों में 'करने वाला', 'आने वाला', 'बोलने वाला' आदि को अलग लिखा जाए, जैसे – मैं घर जाने वाला हूँ, जाने वाले लोग।
3.13.2 संज्ञा और विशेषण के योजक प्रत्यय के रूप में 'घरवाला', 'टोपीवाला' (टोपी बेचने वाला), दिलवाला, दूधवाला आदि एक शब्द के समान ही लिखे जाएँगे। 'वाला' जब प्रत्यय के रूप में आएगा तब मिलाकर लिखा जाएगा, अन्यथा अलग से। यह वाला, यह वाली, पहले वाला, अच्छा वाला, लाल वाला, कल वाली बात आदि में 'वाला' निर्देशक शब्द है। अतः इसे अलग से ही लिखा जाए। इसी तरह लंबे बालों वाली लड़की, दाढ़ी वाला आदमी आदि शब्दों में भी 'वाला' अलग लिखा जाएगा। इससे हम रचना के स्तर पर अंतर कर सकते हैं। जैसे –
गाँववाला - (ग्रामीण) गाँव वाला
मकान - (गाँव का मकान)
3.14 श्रुतिमूलक 'य', 'व'
3.14.1 जहाँ श्रुतिमूलक य, व का प्रयोग विकल्प से होता है वहाँ स्वरात्मक रूपों का ही प्रयोग किया जाए, जैसे – नई, गई, जाए, खाए, आइए। यह नियम क्रिया, विशेषण, अव्यव आदि सभी रूपों और स्थितियों में लागू माना जाए। जैसे – दिखाए गए, राम के लिए, पुस्तक लिए हुए, नई दिल्ली आदि। जहाँ 'य' श्रुतिमूलक व्याकरणिक परिवर्तन न होकर शब्द का ही मूल तत्त्व हो वहाँ वैकल्पिक श्रुतिमूलक स्वरात्मक परिवर्तन करने की आवश्यकता नहीं है, जैसे – स्थायी, अव्ययीभाव, दायित्व।
3.15 विदेशी ध्वनियाँ
3.15.1 उर्दू शब्द
उर्दू से आए अरबी-फारसी मूलक वे शब्द जो हिंदी के अंग बन चुके हैं और जिनकी ध्वनियों का हिंदी ध्वनियों में रूपांतर हो चुका है, हिंदी रूप में ही स्वीकार किए जा सकते हैं। जैसे – कलम, किला, दाग। पर जहाँ उनका शुद्ध रूप में प्रयोग अभीष्ट हो अथवा उच्चारणगत भेद बताना आवश्यक हो, वहाँ शुद्धता का ध्यान रखते हुए उनके हिंदी में प्रचलित रूपों में यथास्थान नुक्ते लगाए जाएँ, जैसे – खाना - ख़ाना, राज - राज़, फन - फ़न।
3.15.2 अंग्रेजी शब्द
अंग्रेजी के जिन शब्दों में अर्धविवृत 'ओ' ध्वनि का प्रयोग होता है, उनके शुद्ध रूप का हिंदी में प्रयोग अभीष्ट होने पर 'आ' की मात्रा के ऊपर अर्धचंद्र (ॉ) का प्रयोग किया जाए, जैसे – कॉलेज, हॉल, मॉल, टॉकीज, ऑफिस।
सभी विदेशी भाषाओं से आगत शब्दों का देवनागरी लिप्यंतरण यथासंभव विदेशी भाषाओं के मानक उच्चारण के अधिक से अधिक निकट होना चाहिए।
3.16 अन्य नियम
3.17.1 शिरोरेखा (headline) का प्रयोग आवश्यक है।
3.17.2 पूर्ण विराम (फुलस्टॉप) को छोड़कर हिंदी में शेष विरामादि चिह्न वही ग्रहण कर लिए गए हैं जो अंग्रेजी में प्रचलित हैं, जैसे –
योजक चिह्न, निर्देशक चिह्न, विवरण चिह्न, अल्पविराम, अर्धविराम, उपविराम, प्रश्न चिह्न, विस्मय सूचक चिह्न, अपोस्ट्रॉफी/ऊर्ध्व अल्प विराम, उद्धरण चिह्न, शब्द चिह्न, तीनों कोष्ठक, लोप चिह्न, संक्षेपसूचक चिह्न, हंसपद।
4. हिंदी के संख्यावाचक शब्दों की एकरूपता
4.0 हिंदी प्रदेशों में संख्यावाचक शब्दों के उच्चारण और लेखन में प्रायः एकरूपता का अभाव दिखाई देता है। इसीलिए एक से सौ तक सभी संख्यावाचक शब्दों पर विचार करने के बाद इनका जो मानक रूप स्वीकृत हुआ, वह इस प्रकार है –
4.1 संख्यावाचक शब्द
एक |
सोलह |
इकतीस |
छियालीस |
इकसठ |
छिहत्तर |
इक्यानबे |
दो |
सत्रह |
बत्तीस |
सैंतालीस |
बासठ |
सतहत्तर |
बानवे |
तीन |
अठारह |
तैंतीस |
अड़तालीस |
तिरसठ |
अठहत्तर |
तिरानवे |
चार |
उन्नीस |
चौंतीस |
उनचास |
चौंसठ |
उनासी |
चौरानवे |
पाँच |
बीस |
पैंतीस |
पचास |
पैंसठ |
अस्सी |
पचानवे |
छह |
इक्कीस |
छत्तीस |
इक्यावन |
छियासठ |
इक्यासी |
छियानवे |
सात |
बाईस |
सैंतीस |
बावन |
सइसठ |
बयासी |
सतानवे |
आठ |
तेईस |
अड़तीस |
तिरपन |
अड़सठ |
तिरासी |
अठानवे |
नौ |
चौबीस |
उनतालीस |
चौवन |
उनहत्तर |
चौरासी |
निन्यानवे |
दस |
पच्चीस |
चालीस |
पचपन |
सत्तर |
पचासी |
सौ हजार, लाख, करोड़, अरब आदि-आदि। |
ग्यारह |
छब्बीस |
इकतालीस |
छप्पन |
इकहत्तर |
छियासी |
|
बारह |
सत्ताईस |
बयालीस |
सतावन |
बहत्तर |
सतासी |
|
तेरह |
अट्ठाईस |
तैंतालीस |
अट्ठावन |
तिहत्तर |
अठासी |
|
चौदह |
उनतीस |
चवालीस |
उनसठ |
चौहत्तर |
नवासी |
|
पंद्रह |
तीस |
पैंतालीस |
साठ |
पचहत्तर |
नब्बे |
4.2 क्रमसूचक संख्याएँ (Ordinal Numbers)
पहला |
दूसरा |
तीसरा |
चौथा |
पाँचवाँ |
छठा |
सातवाँ |
आठवाँ |
नवाँ |
दसवाँ |
4.3 भिन्नसूचक संख्याएँ (Fractional Numbers)
एक चौथाई |
¼ |
सवा दो |
2¼ |
आधा |
½ |
ढाई |
2½ |
पौन |
¾ |
पौने तीन |
2¾ |
सवा |
1¼ |
सवा तीन |
3¼ |
डेढ़ |
1½ |
साढ़े तीन |
3½ |
पौने दो |
1¾ |
4.4 समय के लिए
पौन बजा है अर्थात् 12.45
सवा बजा है अर्थात् 01.15
डेढ़ बजा है अर्थात् 01.30
पौने दो बजे हैं अर्थात् 01.45
सवा दो बजे हैं अर्थात् 02.15
ढाई बजे है अर्थात् 02.30
पौने तीन बजे हैं अर्थात् 02.45
साढ़े तीन बजे हैं अर्थात् 03.30
5. पैराग्राफ विभाजन में सूचक वर्गों तथा अंकों का प्रयोग
5.0 पैराग्राफ विभाजन में सूचक वर्गों तथा अंकों के प्रयोग के संबंध में यह निर्णय किया गया कि A, B, C अथवा a, b, c के लिए हिंदी में सर्वत्र क, ख, ग का प्रयोग किया जाए। जहाँ रोमन वर्ण कोष्ठक में हों, वहाँ देवनागरी वर्गों को भी कोष्ठकों में रखा जाए। विषय के विभाजन, उपविभाजन, पैराग्राफों या उपपैराग्राफों के लिए अंतरराष्ट्रीय अंकों अर्थात् 1, 2, 3 के प्रयोग के साथ-साथ आवश्यकता के अनुसार रोमन अंकों का भी प्रयोग किया जा सकता है। उपर्युक्त पद्धति को निम्नलिखित नमूने के उदाहरण स्वरूप देखा जा सकता है –
1.0
1.1
1.1.1
1.1.2
1.1.2.1
1.2
2.0
परिशिष्ट
पुस्तक के पूर्व संस्करणों से संबद्ध विशेषज्ञ
श्री अक्षय कुमार जैन |
भूतपूर्व संपादक, नवभारत टाइम्स, नई दिल्ली |
डॉ. इंद्रनाथ चौधरी |
अध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिंदी विभाग, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद |
डॉ. ई. पांडुरंग राव |
निदेशक (हिंदी), संघ लोक सेवा आयोग, नई दिल्ली |
डॉ. ए. चंद्रशेखर |
भूतपूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, भाषाविज्ञान विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली |
डॉ. एन. एन. बवेजा |
भाषाविद् |
श्री एन. के. तोशखानी |
भाषाविद् |
प्रो. एन. नागप्पा |
भूतपूर्व अध्यक्ष, हिंदी विभाग, मैसूर विश्वविद्यालय, मैसूर |
डॉ. एम. के. जेतली |
रीडर, आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली |
डॉ. कृष्णगोपाल रस्तोगी |
प्रोफेसर, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद, नई दिल्ली |
डॉ. कैलाशचंद्र भाटिया |
प्रोफेसर, हिंदी तथा प्रादेशिक भाषाएँ, ला.ब.शा. राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी |
प्रो. गुरुबख्श सिंह |
भाषाविद् |
श्री गोलोक बिहारी धळ |
भूतपूर्व अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, राजकीय कॉलेज, पुरी (ओडिशा) |
डॉ. छैलबिहारी गुप्त |
अलीगढ़ |
डॉ. जे.एल. रेड्डी |
दयाल सिंह कॉलेज, नई दिल्ली |
प्रो. जोगेंद्र सिंह सोंधी |
भूतपूर्व अध्यक्ष, बिहार हिंदी ग्रंथ अकादमी, पटना |
प्रो. टी.पी. मीनाक्षीसुंदरन् |
भूतपर्व कुलपति, मदुरै विश्वविद्यालय, मदुरै |
श्री देवराज |
प्रतिनिधि, हिंदी प्रकाशन संघ, दिल्ली |
प्रो. देवेंद्रनाथ शर्मा |
भूतपूर्व प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली |
श्री नंद कुमार अवस्थी |
संचालक, भवन वाणी ट्रस्ट, लखनऊ |
डॉ. नगेंद्र |
भूतपूर्व प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली |
डॉ. पी.बी. पंडित |
भूतपूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, भाषाविज्ञान विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली |
श्री पृथ्वीनाथ पुष्प |
अध्यक्ष, हिंदी विभाग, राजकीय महाविद्यालय, श्रीनगर |
डॉ. बाबूराम सक्सेना |
भूतपूर्व कुलपति, रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर एवं भूतपूर्व अध्यक्ष, वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, नई दिल्ली |
डॉ. बालगोविंद मिश्र |
निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा |
डॉ. बी.पी. कोलते |
अध्यक्ष, मराठी विभाग, नागपुर विश्वविद्यालय |
डॉ. भोलानाथ तिवारी |
रीडर, हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली |
डॉ. मसूद हुसैन खाँ |
भूतपूर्व कुलपति, जामिया मिलिया इस्लामिया, दिल्ली |
डॉ. मोहनलाल सर |
पूर्व प्रोफेसर, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा |
डॉ. रवींद्रनाथ श्रीवास्तव |
प्रोफेसर, भाषाविज्ञान विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली |
श्री लोकनाथ भराली |
क्षेत्रीय अधिकारी, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, गुवाहाटी |
डॉ. विद्यानिवास मिश्र |
निदेशक, क. मुं. हिंदी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ, आगरा |
डॉ. विश्वनाथ प्रसाद |
प्रतिनिधि, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |
डॉ. सविता जाजोदिया |
संपादक, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, नई दिल्ली |
डॉ. सुकुमार सेन |
भूतपूर्व प्रोफेसर, कोलकाता विश्वविद्यालय, कोलकाता |
डॉ. हरदेव बाहरी |
भूतपूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिंदी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद |
प्रो. वी. रा. जगन्नाथन |
पूर्व प्रोफेसर (हिंदी), इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त, विश्वविद्यालय, दिल्ली |
डॉ. अशोक चक्रधर |
साहित्यकार, नई दिल्ली |
डॉ. ओमविकास |
वरिष्ठ निदेशक, सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, नई दिल्ली |
प्रो. सूरजभान सिंह |
सलाहकार, सीडैक तथा पूर्व अध्यक्ष, वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, नई दिल्ली |
डॉ. रामशरण गौड़ |
पूर्व सचिव, हिंदी अकादमी, नई दिल्ली |
श्री विजय कुमार मल्होत्रा |
पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, नई दिल्ली |
प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा |
भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर |
प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी |
पूर्व प्रोफेसर, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा |
प्रो. श्रीशचंद्र जैसवाल |
केंद्रीय हिंदी संस्थान, नई दिल्ली |
प्रो. रामजन्म शर्मा |
एन.सी.ई.आर.टी., नई दिल्ली |
प्रो. दिलीप सिंह |
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, धारवाड़ |
प्रो. अश्विनी कुमार श्रीवास्तव |
केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा |
डॉ. हेमंत दरबारी |
प्रोग्राम कोआर्डिनेटर, सी-डैक, पुणे |
डॉ. प्रभात कुमार |
प्रबंधक, प्रभात प्रकाशन, दिल्ली |
डॉ. बालकृष्ण राय |
राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय, नई दिल्ली |
डॉ. हेमंत जोशी |
भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली |
श्री उमेश प्रसाद साह |
सचिव, ओडिशा हिंदी परिवेश, कटक |
श्री ब्रजसुंदर पाढ़ी |
सचिव, हिंदी शिक्षा समिति, ओडिशा |
डॉ. नरेंद्र व्यास |
भाषाविद् |
डॉ. ठाकुरदास |
भाषाविद् |
विदेश मंत्रालय
श्री हरिवंश राय बच्चन |
भूतपूर्व विशेषाधिकारी (हिंदी) |
विधि, न्याय तथा कंपनी कार्य मंत्रालय
श्री बालकृष्ण |
भूतपूर्व कार्यकारी सचिव, राजभाषा विधायी आयोग |
श्री ब्रजकिशोर शर्मा |
संयुक्त सचिव, राजभाषा स्कंध, राजभाषा विधायी आयोग |
सूचना तथा प्रसारण मंत्रालय
श्री हृदय नारायण अग्रवाल |
प्रतिनिधि |
श्री चंद्रगुप्त विद्यालंकार |
प्रतिनिधि |
गृह मंत्रालय
श्री रमाप्रसन्न नायक |
भूतपूर्व हिंदी सलाहकार |
श्री मुनीश गुप्त |
भूतपूर्व संयुक्त सचिव, राजभाषा विभाग |
श्री हरिबाबू कंसल |
भूतपूर्व उपसचिव, राजभाषा विभाग |
श्री राजकृष्ण बंसल |
भूतपूर्व उपसचिव, राजभाषा विभाग |
श्री रामेश्वर प्रसाद मालवीय |
भूतपूर्व निदेशक, केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो, नई दिल्ली |
श्री काशीराम शर्मा |
भूतपूर्व निदेशक, केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो, नई दिल्ली |
शिक्षा तथा संस्कृति मंत्रालय
डॉ. कपिला वात्स्यायन |
भूतपूर्व अपर सचिव |
श्री कृष्णदयाल भार्गव |
भूतपूर्व उपसचिव |
श्री पी.एन. नाटू |
भूतपूर्व उपसचिव |
अन्य विशेषज्ञ
डॉ. ब्रजेंद्र त्रिपाठी |
साहित्य अकादमी, नई दिल्ली |
प्रो. प्रमोद पांडेय |
विभागाध्यक्ष, भाषा संस्थान, जे.एन.यू, नई दिल्ली |
डॉ. उमा बंसल |
सहायक निदेशक, नेशनल बुक ट्रस्ट, वसंतकुंज, नई दिल्ली |
डॉ. परमानंद पांचाल |
नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली |
डॉ. मोहिनी हिंगोरानी |
निदेशक, केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान, नई दिल्ली |
प्रो. टी.एन. शुक्ल |
हिंदी विभाग, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर, मध्य प्रदेश |
प्रो. आत्मप्रकाश श्रीवास्तव |
डीन, अनुवाद विद्यापीठ, महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र |
डॉ. एम. शेषन |
भाषाविद, चेन्नै, तमिलनाडु |
डॉ. मिथिलेश कुमारी मिश्र |
संपादक, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना |
प्रो. के. एल. वर्मा |
हिंदी विभाग, पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर |
डॉ. जे. रामचंद्रन नायर |
केरल हिंदी प्रचार सभा, तिरुवनंतपुरम |
डॉ. दिनेश चौबे, रीडर |
हिंदी विभाग, पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग, मेघालय |
डॉ. स्वर्णलता |
निदेशक, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी मंत्रालय, नई दिल्ली |
डॉ. वी.रा. राल्ते |
निदेशक यू.एच.सी.सी. आइजोल, मिजोरम |
डॉ. अरुण होता |
पं. बंगाल राज्य विश्वविद्यालय, कोलकाता-700126 |
प्रो. जयसिंह नीरद |
क. मु. हिंदी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ, आगरा |
डॉ. सुधांशु नायक |
हिंदी विभाग, खलीकोड कॉलेज, गंजाम, ओडिशा संताली विशेषज्ञ |
प्रो. कृष्णचंद्र टुडु |
संताली विभाग, राँची विश्वविद्यालय, राँची |
डॉ. धनेश्वर माँझी |
संताली विभाग, विश्वभारती शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल |
डॉ. ठाकुर प्रसाद मुरमू |
संताली विभाग, सी.आई.आई.एल., मैसूर |
प्रो. बिरबल हेम्ब्रम |
बहरागोड़ा कॉलेज, झारखंड |
डॉ. रमणिका गुप्ता |
संपादक 'आम आदमी', नई दिल्ली |
डॉ. शशि शेखर तोशखानी |
कश्मीरी भाषाविद, नई दिल्ली |
डॉ गौरीशंकर रैना |
दूरदर्शन, दिल्ली |
डॉ. रामनाथ भट्ट |
भाषाविद्, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, बनारस, उत्तर प्रदेश |
श्री बी. एन. बेताब |
आकाशवाणी, दिल्ली |
डॉ. सीतेश आलोक |
हिंदी लेखक एवं समीक्षक, नई दिल्ली, भाषाविद |
डॉ. गुरचरण सिंह |
उपाचार्य, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली, पंजाबी भाषा-विशेषज्ञ |
प्रो. मनजीत सिंह |
पंजाबी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली, पंजाबी भाषा-विशेषज्ञ |
प्रो. पीतांबर ठाकवाणी |
सेवानिवृत्त प्रोफेसर (अनुप्रयुक्त भाषा विज्ञान), केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा, सिंधी भाषा-विशेषज्ञ |
डॉ. रत्नोत्तमा दास |
असिस्टेंट प्रोफेसर, भारतीय भाषा विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली, असमिया भाषा-विशेषज्ञ |
डॉ. श्रीता मुखर्जी |
असिस्टेंट प्रोफेसर, दयाल सिंह महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली, बांग्ला भाषा-विशेषज्ञ |
डॉ. एच. बालसुब्रह्मण्यम |
पूर्व विजिटिंग प्रोफेसर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, तमिल एवं मलयालम भाषा-विशेषज्ञ |
डॉ. जी. राजगोपाल |
एसोसिएट प्रोफेसर, भारतीय भाषा विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली, तमिल भाषा-विशेषज्ञ |
प्रो. टी.एस. सत्यनाथ |
सेवानिवृत्त प्रोफेसर, भारतीय भाषा विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली, कन्नड भाषा-विशेषज्ञ |
डॉ. वेंकटरामय्या |
असिस्टेंट प्रोफेसर, भारतीय भाषा विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली, तेलुगु भाषा-विशेषज्ञ |
श्री उमाकांत खुबालकर |
सेवानिवृत्त सहायक निदेशक, वै.त.श.आयोग, नई दिल्ली, मराठी भाषा विशेषज्ञ |
डॉ. भगत दशरथ तुकाराम |
पोस्ट डॉक्टरेट (मराठी), दिल्ली, मराठी भाषा-विशेषज्ञ |
डॉ. राजेंद्र मेहता |
असिस्टेंट प्रोफेसर, भारतीय भाषा विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली, गुजराती भाषा-विशेषज्ञ |
डॉ. रूपकृष्ण भट्ट |
सेवानिवृत्त प्रोफेसर, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, नई दिल्ली, कश्मीरी भाषा-विशेषज्ञ |
डॉ. जितेंद्रनाथ मुरमु |
सी.एम.ओ. (एन.एफ.एस.जी.), केंद्रीय सरकार स्वास्थ्य योजना, नई दिल्ली, संताली भाषा-विशेषज्ञ |
डॉ. गंगेश गुंजन |
सेवानिवृत्त निदेशक, आकाशवाणी महानिदेशालय, नई दिल्ली, मैथिली भाषा-विशेषज्ञ |
डॉ. कामिनी कामायनी |
लेखिका (हिंदी एवं मैथिली), नई दिल्ली, मैथिली भाषा-विशेषज्ञ |
प्रो. देवशंकर नवीन |
भारतीय भाषा केंद्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, मैथिली भाषा-विशेषज्ञ |
डॉ. मोहन सिंह |
लेखक, जम्मू, डोगरी भाषा-विशेषज्ञ |
प्रो. शिवदेव सिंह मन्हास |
डोगरी विभाग, जम्मू विश्वविद्यालय, जम्मू, डोगरी भाषा-विशेषज्ञ |
डॉ. चंद्रलेखा डिसौज़ा |
एसोसिएट प्रोफेसर, गोवा विश्वविद्यालय, गोवा, कोंकणी भाषा-विशेषज्ञ |
डॉ. स्नेहलता शरेशचंद्र |
सेवानिवृत्त प्राध्यापिका, धारवाड़, कर्नाटक, कोंकणी भाषा-विशेषज्ञ |
डॉ. सी. प्रमोदिनी |
एसोसिएट प्रोफेसर, भारतीय भाषा विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली, मणिपुरी भाषा-विशेषज्ञ |
प्रो. इर्तेजा करीम |
निदेशक, उर्दू भाषा विकास परिषद, नई दिल्ली, उर्दू भाषा-विशेषज्ञ |
डॉ. अब्बास रज़ा नैय्यर |
एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, उर्दू विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ, उर्दू भाषा-विशेषज्ञ |
डॉ. बलदेवानंद सागर |
सेवानिवृत्त संस्कृत समाचार प्रसारक, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन, नई दिल्ली, संस्कृत भाषा-विशेषज्ञ |
श्री विष्णु बहादुर गुरुंग |
अनुवादक-उद्घोषक, नेपाली एकांश, विदेश प्रसारण सेवा, आकाशवाणी, नई दिल्ली, नेपाली भाषा-विशेषज्ञ |
डॉ. विजय कुमार मोहंती |
सेवानिवृत्त हिंदी प्राध्यापक, बालेश्वर, ओडिशा, ओडिआ भाषा-विशेषज्ञ |
श्री भारत बसुमातारी |
समाचार वाचक, आकाशवाणी, नई दिल्ली, बोडो भाषा-विशेषज्ञ |
श्री मनोज जैन |
निदेशक, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, लोधी रोड, नई दिल्ली, कंप्यूटर-विशेषज्ञ |
श्री करुणेश कुमार अरोड़ा |
संयुक्त निदेशक, सी.डेक, नोएडा, कंप्यूटर-विशेषज्ञ |
बारहखड़ी
क |
का |
कि |
की |
कु |
कू |
के |
कै |
को |
कौ |
कं |
कः |
ख |
खा |
खि |
खी |
खु |
खू |
खे |
खै |
खो |
खौ |
खं |
खः |
ग |
गा |
गि |
गी |
गु |
गू |
गे |
गै |
गो |
गौ |
गं |
गः |
घ |
घा |
घि |
घी |
घु |
घू |
घे |
घै |
घो |
घौ |
घं |
घः |
च |
चा |
चि |
ची |
चु |
चू |
चे |
चै |
चो |
चौ |
चं |
चः |
छ |
छा |
छि |
छी |
छु |
छू |
छे |
छै |
छो |
छौ |
छं |
छः |
ज |
जा |
जि |
जी |
जु |
जू |
जे |
जै |
जो |
जौ |
जं |
जः |
झ |
झा |
झि |
झी |
झु |
झू |
झे |
झै |
झौ |
झौ |
झं |
झः |
ट |
टा |
टि |
टी |
टु |
टू |
टे |
टै |
टो |
टौ |
टं |
टः |
ठ |
ठा |
ठि |
ठी |
ठु |
ठू |
ठे |
ठै |
ठो |
ठौ |
ठं |
ठः |
ड |
डा |
डि |
डी |
डु |
डू |
डे |
डै |
डो |
डौ |
डं |
डः |
ढ |
ढा |
ढि |
ढी |
ढु |
ढू |
ढे |
ढै |
ढो |
ढौ |
ढं |
ढः |
ण |
णा |
णि |
णी |
णु |
णू |
णे |
णै |
णो |
णौ |
णं |
णः |
त |
ता |
ति |
ती |
तु |
तू |
ते |
तै |
तो |
तौ |
तं |
तः |
थ |
था |
थि |
थी |
थु |
थू |
थे |
थै |
थो |
थौ |
थं |
थः |
द |
दा |
दि |
दी |
दु |
दू |
दे |
दै |
दो |
दौ |
दं |
दः |
ध |
धा |
धि |
धी |
धु |
धू |
धे |
धै |
धो |
धौ |
धं |
धः |
न |
ना |
नि |
नी |
नु |
नू |
ने |
नै |
नो |
नौ |
नं |
नः |
प |
पा |
पि |
पी |
पु |
पू |
पे |
पै |
पो |
पौ |
पं |
पः |
फ |
फा |
फि |
फी |
फु |
फू |
फे |
फै |
फो |
फौ |
फं |
फः |
ब |
बा |
बि |
बी |
बु |
बू |
बे |
बै |
बो |
बौ |
बं |
बः |
भ |
भा |
भि |
भी |
भु |
भू |
भे |
भै |
भो |
भौ |
भं |
भः |
म |
मा |
मि |
मी |
मु |
मू |
मे |
मै |
मो |
मौ |
मं |
मः |
य |
या |
यि |
यी |
यु |
यू |
ये |
यै |
यो |
यौ |
यं |
यः |
र |
रा |
रि |
री |
रु |
रू |
रे |
रै |
रो |
रौ |
रं |
रः |
ल |
ला |
लि |
ली |
लु |
लू |
ले |
लै |
लो |
लौ |
लं |
लः |
व |
वा |
वि |
वी |
वु |
वू |
वे |
वै |
वो |
वौ |
वं |
वः |
श |
शा |
शि |
शी |
शु |
शू |
शे |
शै |
शो |
शौ |
शं |
शः |
ष |
षा |
षि |
षी |
षु |
षू |
षे |
षै |
षो |
षौ |
षं |
षः |
स |
सा |
सि |
सी |
सु |
सू |
से |
सै |
सो |
सौ |
सं |
सः |
ह |
हा |
हि |
ही |
हु |
हू |
हे |
है |
हो |
हौ |
हं |
हः |
केंद्रीय हिंदी निदेशालय
उच्चतर शिक्षा विभाग मानव संसाधन विकास मंत्रालय
भारत सरकार
पश्चिमी खंड-7, रामकृष्णपुरम, नई दिल्ली – 110066
CENTRAL HINDI DIRECTORATE
Department of Higher Education
Ministry of Human Resource Development
Government of India
West Block-7, R.K. Puram, New Delhi – 110066
Phone: 011-26105211
Website: www.chd.mhrd.gov.in / www.chdpublication.mhrd.gov.in
Copyright @ Government of India
इस सामग्री का कॉपीराइट भारत सरकार के पास है। चूंकि यह आम जन के प्रयोग के लिए एक मार्गदर्शिका है, इसका बेहतर, कंप्यूटर रीडेबल फॉर्मेट में इसे यहां पुनः प्रस्तुत किया गया है। इस मार्गदर्शिका का अंग्रेजी संस्करण हम जल्द ही यहां प्रकाशित करेंगे।